राजस्थान के उदयपुर के मेनार कस्बे में हर बार की तरह इस बार भी होली पर बुधवार की रात दिवाली से कम रंगत नहीं थी। रोशनी की जगमग, आतिशबाजी, टन टन करती तलवारें, तोप बंदूकें…लाल कसूमल पाग के साथ पारंपरिक मेवाड़ी पोशाक में गेर रमते किशोर, युवा और बड़े बुजुर्ग…मौका था मेनार जमरा बीज के पारंपरिक आयोजन का, जिसे देखने यहां बड़ी संख्या में लोग पहुंचे।
यहां हर साल होली का जश्न रंगों से नहीं, बल्कि बारूद से खेलकर मनाया जाता है। इसमें 15 साल के युवा से लेकर 70 साल के बुजुर्ग तक शामिल होते हैं। इसे देखने स्थानीय 3 हजार लोगों के अलावा आसपास गांवों के 10 से 12 हजार लोग भी देखने पहुंचते। दरअसल, होली के तीसरे दिन मनाए जाने वाले जीत के इस पर्व पर 5 तोपें थोड़ी-थोड़ी दूरी पर लगाई जाती है, जहां से हर 7 मिनट में बारूद के गोले दागे जाते हैं।
बुधवार को भी करीब 2 हजार बंदूकों से एक के बाद एक हवा में फायर किए गए। इसके अलावा बुधवार दोपहर 2 बजे से गुरुवार अल सुबह 4 बजे तक बिना रुके लगातार रणकपुर ढोल बजता रहा।
आपको बता दें कि जमरा बीज पर्व का इतिहास मेवाड़ के महाराणा रहे अमरसिंह प्रथम के समय करीब 400 साल पुराना है। जब मेनार गांव के लोगों ने मुगलों से युद्ध लड़कर मेवाड़ की रक्षा में अहम भूमिका निभाई थी। मुगलों से युद्ध में विजय की खुशी में जश्न मनाने के लिए हर साल गांववासी बारूद की होली खेलते हैं।
महाराणा अमर सिंह के समय मेनार में मुगल सेना की चौकी थी, जिसे मेनारिया ब्राह्मणों कुशल रणनीति से लड़ाई कर चौकी को ध्वस्त किया था। इसी की खुशी में सालों से जमरा बीज पर जश्न मनाने की परंपरा चली आ रही है।